संसार से संस्कार नहीं है, संस्कार से संसार बनता है; संसार में अब जो परिवर्तन लाना है उसके लिए अपने संस्कारों को परिवर्तन करना है

जब हम परिवर्तन शब्द सुनते हैं, तो हमारा ध्यान दुनिया की तरफ़, लोगों की तरफ़ या ख़ुद की तरफ जाता है। ये परिवर्तन हर जगह हो रहा है, बाहर-आसपास और अपने अंदर भी। हम सुनते आए हैं परिवर्तन संसार का नियम है, लेकिन इस पर हमारा ध्यान कहां जाता है! इसमें भी महत्वपूर्ण है कि कौन से परिवर्तन पर हमारा नियंत्रण है। जहां हमारा खुद का चुनाव है।

कई बार हम समझते हैं कि जो बाहर का परिवर्तन है वो हमारे ऊपर प्रभाव डाल देता है। जब बाहरी चीज़ें हमारे अनुसार नहीं होती हैं तो हम एक तय जीवन जीने के तरीके में ढल चुके होते हैं और फिर अचानक इतनी बड़ी बात (कोरोना) आ गई।

हमें ये भी नहीं पता कि ये कब तक चलेगी। अचानक बाहर की दुनिया बदल गई, जब ये बदलाव हुआ तो उसका असर हमारे काम करने के तरीके पर आया, अर्थव्यवस्था पर आया, लोगों के व्यवहार पर भी आ गया। कुछ लोग जो पहले शांत रहा करते थे अब अचानक से रिएक्ट कर देते हैं। किसी को रोना आ रहा है, तो कोई गुस्सा कर रहा है।

दुनिया जिस दिशा में गई, हम भी वहीं गए

जब बाहर की दुनिया में ये सब परिवर्तन हो रहे थे तब हमारा ध्यान इस ओर गया कि लोगों को ठीक कैसे करें। परिस्थिति को ठीक कैसे करें। इस सबमें हमारी भावना बहुत अच्छी थी, इरादे नेक थे, लेकिन हमने अपनी आंतरिक दुनिया में अपनी सोच, भावनाओं की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। क्योंकि हमने कहा, बाहर जो रहा है उसी का असर तो हमारी अंदर की दुनिया पर होगा। लेकिन अंदर का परिवर्तन किस दिशा में होना था ये हमारा चयन था।

हमने कहा कि डर, चिंता-गुस्सा तो स्वाभाविक है और हम भी उसी दिशा में हो गए। हमारे अंदर बदलाव आ गया क्योंकि बाहर परिवर्तन हुआ। डर हमारा एक नैचुरल इमोशन बन गया। ये भी तो एक आंतरिक जगत में परिवर्तन हुआ। जब ये आंतरिक दुनिया में परिवर्तन हुआ तो इसका प्रभाव बाहर की परिस्थिति पर पड़ने लगा।

हम बाहर मेहनत बहुत कर रहे हैं, एक-दूसरे का ध्यान रख रहे हैं, लेकिन हम कौन सी वाइब्रेशन फैला रहे हैं? उस पर हमने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि हमने कहा ये तो सहज है।

जीवन के आध्यात्मिक समीकरण को ध्यान रखना चाहिए

जीवन के कुछ आध्यात्मिक समीकरण होते हैं, जो हमें ध्यान रखने हैं। हमें यह हमेशा याद रखना है कि आत्मा का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है। संकल्प से सृष्टि बनती है। आंतरिक दुनिया बाहर की दुनिया को बनाती है। ये इक्वेशन है। लेकिन जब हम ये इक्वेशन भूल गए तो हमने सोचा बाहर का परिवर्तन अंदर का परिवर्तन लाता है।

जब भी बाहर कोई चेंज आएगा, तो हमारे पास एक विकल्प है। हम जैसे थे वैसे नहीं रह सकते, लेकिन चेंज होते समय यह याद रखना होगा कि हमारा बदलाव, बाहर के बदलाव को प्रभावित करेगा। ये इक्वेशन सही होना बहुत जरूरी है।

संसार से संस्कार नहीं है, बल्कि संस्कार से संसार बनता है। संसार में अब जो परिवर्तन लाना है उसके लिए अपने संस्कारों को परिवर्तन करना है। आंतरिक दुनिया में परिवर्तन करने का नियंत्रण हमारे पास है। ये हमारा चयन है, ये हमारी शक्ति है। लेकिन जब हम इस शक्ति का इस्तेमाल नहीं करते, तो हम दूसरी दिशा में परिवर्तित हो जाते हैं।

आपके करीबी में बदलाव, आपके अंदर परिवर्तन भी संभव

मान लो आपका एक बहुत करीबी अचानक ही बदल गया है। अब अगर आपने ध्यान नहीं रखा तो आपके अंदर भी परिवर्तन आएगा, लेकिन ये सही दिशा में नहीं होगा। हमें बुरा लगेगा, हर्ट होंगे, नाराज होंगे, हम भी ऊंची आवाज में बोलना शुरू कर देंगे, विश्वास टूट जाएगा। तो जब बाहर ये बदलाव आया तब हमारे अंदर भी परिवर्तन हुआ, लेकिन वह परिवर्तन हमने चैतन्य होकर (कॉन्शियसली) नहीं चुना, अपनी शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया, खुद में सही परिवर्तन नहीं लाया।

तो जो स्वत: परिवर्तन हुआ वो दूसरी दिशा में था और ये परिवर्तन हमारे संस्कार, संसार पर प्रभाव डालता है। पहले वो बदले थे सिर्फ, अब हम भी बदल गए और हमारे संस्कार का प्रभाव हमारे संसार पर पड़ा तो हमारा रिश्ता बदल गया।

रिश्ते की नींव हिल गई। और जब ये सब कुछ हुआ तो हमने जिम्मेवार किसको ठहराया? सामने वाले को। ये सच है कि वे बदल गए हैं। लेकिन ये भी सच है कि हम भी बदले। अगर हमारा बदलाव सही दिशा में होता, अपना बदलाव कॉन्शियसली चुनते तो हमारा संसार, वो रिश्ता एक अलग दिशा में चला जाता।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Sanskar is not created by the world, Sanskara makes the world


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Goz10k
via IFTTT

Post a Comment

0 Comments